परशुराम शिव के भक्त थे और उसे भगवान शिव से एक वरदान के रूप में एक परशु मिला था , इस प्रकार परशुराम नाम दिया गया था। शिव ने उन्हें युद्ध कौशल भी सिखाया था । एक बच्चे के रूप में परशुराम एक उत्सुक शिक्षार्थी थे और उन्होंने हमेशा अपने पिता ऋषि जमदगनी का पालन किया। परशुराम प्रथम योद्धा ब्राह्मण थे और उन्हें ब्रह्मक्षत्र्य भी कहा जाता है उनकी मां रेणुका देवी क्षत्रिय की बेटी थीं। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम का जन्म हुआ था। महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना। किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा। तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों के समान था। एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा चित्ररथ भी वहां जलविहार कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। जमदग्रि ने रेणुका को देखकर उसके मन की बात जान ली और अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु मोहवश किसी ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे अपने फरसे से उनका सिर काट डाला। ये देखकर मुनि जमदग्रि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं। एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमदग्रि मुनि के आश्रम से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा कामधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह कामधेनु के बछड़े को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया। कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्रि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहिन कर दिया। महाभारत के अनुसार परशुराम का ये क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें इस घोर कर्म से रोका। तब उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद कर दिया और सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे। ऋषि जमदग्रि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेणवसु और विश्वावसु ।

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