प्राचीन हिंदू साहित्य में बृहस्पति एक वैदिक युग ऋषि है जो देवताओं को सलाह देते है, जबकि कुछ मध्ययुगीन ग्रंथों में यह सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति को संदर्भित करता है। प्राचीन ग्रंथो में उनके ज्ञान और चरित्र को सम्मानित किया गया है, और उन्हें सभी देवों द्वारा गुरु (शिक्षक) माना जाता है। वैदिक साहित्य और अन्य प्राचीन ग्रंथों में ऋषि बृहस्पति को अन्य नामों जैसे ब्राह्मणस्पति, पुरोहित, अंगिरस (अंगिरस के पुत्र) भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में सप्ताह का हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है। और इन्ही देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत आदि करते है। ऐसे में सप्ताह के सभी दिनों का व्रत लाभकारी माना जाता है लेकिन इन सभी में वीरवार का व्रत और पूजन बहुत लाभकारी माना जाता है। जिसे भगवान श्री हरी विष्णु जी के लिए रखा जाता है। और भगत मनचाही इच्छा का बरदान प्राप्त करते है। प्राचीन ग्रंथों में वीरवार विष्णु जी का दिन बताया गया है जिसमे पूजन करने और व्रत आदि करने से मनुष्य की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती है। वीरवार के व्रत में केले के पेड़ का पूजन किया जाता है जिसे हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। इस व्रत में पीले रंग का बड़ा खास महत्व होता है। कपड़ों से लेकर भोग तक सभी में पीले रंग का होना अनिवार्य माना जाता है।
बृहस्पति व्रत विधि:
बृहस्पतिवार को सुबह-सुबह उठकर स्नान करें। नहाने के बाद ही पीले रंग के वस्त्र पहन लें और पूजा के दौरान भी इन्ही वस्त्रों को पहन कर पूजा करें. भगवान सूर्य व मां तुलसी और शालिग्राम भगवान को जल चढ़ाएं। मंदिर में भगवान विष्णु की विधिवत पूजन करें और पूजन के लिए पीली वस्तुओं का प्रयोग करें। पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल, और हल्दी का प्रयोग करें। इसके बाद केले के पेड़ के तने पर चने की दाल के साथ पूजा की जाती है। केले के पेड़ में हल्दी युक्त जल चढ़ाएं। केले के पेड़ की जड़ो में चने की दाल के साथ ही मुन्नके भी चढ़ाएं। इसके बाद घी का दीपक जलाकर उस पेड़ की आरती करें। केले के पेड़ के पास ही बैठकर व्रत कथा का भी पाठ करें.व्रत के दौरान पुरे दिन उपवास रखा जाता है। दिन में एक बार सूर्य ढलने के बाद भोजन किया जा सकता है। भोजन में पीली वस्तुएं खाएं तो बेहतर. लेकिन गलती से भी नमक का इस्तेमाल ना करें। प्रसाद के रूप में केला को अत्यंत शुभ माना जाता है। लेकिन व्रत रखने वाले को इस दिन केला नहीं खाना चाहिए। पूजा के बाद बृहस्पति देव की कथा सुनना आवश्यक है। कहते हैं बिना कथा सुने व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जाता और उसका पूर्ण फल नहीं मिलता। बृहस्पतिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत से धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, उनका जल्दी ही विवाह हो जाता है। बुद्धि और शक्ति का वरदान प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन में बहुत सी सुख समृद्धि आती है। #dharmashastra
Reblogged this on Journal Edge.
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kya post ki hai aapne
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kyu? apko samajh nhi aya kya?
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