शिकारी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में हिमालय में सिराज घाटी, के पास है, जिसमें देवदार जंगल और सेब बागानों का सुंदर दृश्य है। हिमाचल प्रदेश राज्य में समुद्र तल से 2850 मीटर की ऊंचाई पर शिकारी देवी मंदिर स्थित है। आप पहाड़ी की चोटी पर स्थित शिकारी देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए विभिन्न मार्गों के साथ एक सुंदर यात्रा का आनंद ले सकते हैं। शिकारी देवी का छत रहित मंदिर एक प्राचीन संरचना है जो कि इस निर्वासन के दौरान इस क्षेत्र में आए पांडवों के समय से माना जाता है। समुद्र तल से 10,768 फीट की ऊंचाई पर शिकारी पूरे मंडी जिले में सबसे ऊंची चोटी माना जाता है और घाटी के स्पष्ट दृश्यों को दर्शाती है। यह भी माना जाता है कि सर्दियों के दौरान जब पूरे इलाके में घनी बर्फ गिरती है तो मुख्य मंदिर में आश्चर्यजनक रूप से कही भी बर्फ एकत्र नहीं होती है। मंदिर में देवी वास्तव में काली है जिसे शिकारी देवी के रूप में पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि देवी की मुख्य रूप से शिकारियों द्वारा पूजा की जाती थी और वह उन्हें किसी भी हमले या उन पर होने वाले किसी भी अन्य खतरों से बचती थी । मंदिर पुजारी के अनुसार, देवी शिकार से प्यार करती है और बलिदान मांगती है परिसर के बाहर पशु बलिदान करने के लिए एक विशेष जगह थी। पांडवों ने यहां तपस्या की थी। मां दुर्गा तपस्या से प्रसन्न हुईं और पांडवों को कौरवों के खिलाफ युद्घ में जीत का आर्शीवाद दिया। इस दौरान यहां मंदिर का निर्माण तो किया गया मगर पूरा मंदिर नहीं बन पाया। मां की पत्थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद पांडव यहां से चले गए। यहां हर साल बर्फ तो खूब गिरती है मगर मां के स्थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती। क्योंकि ये पूरा क्षेत्र वन्य जीवों से भरा पड़ा था, इसीलिए शिकारी अक्सर यहां आने लगे। शिकारी भी माता से शिकार में सफलता की प्रार्थना करते थे और उन्हें कामयाबी भी मिलने लगी। इसी के बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी के नाम से पड़ गया। मगर सबसे हैरत वाली बात ये थी कि मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत लगवाने काम शुरू किया गया। लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। माता की शक्ति के आगे कभी भी छत नहीं लग पाई। आज भी हर साल यहां लाखों श्रद्घालु पहुंचते हैं। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता भी बेहद ही सुंदर है। चारों तरफ हरियाली तथा सुन्दर पहाड़ दिखाई देते है।
