देव कमरुनाग – महाभारत कालीन स्थल के रूप में विख्यात।

देव कामरुनाग का मूल नाम रतन याक्ष था और वह स्वयं द्वारा सीखे हुए योद्धा थे। वह भगवान विष्णु की मूर्ति को अपने सामने रखते हुए अभ्यास करते थे और उन्होंने उन्हें अपने गुरु के रूप में माना। ऐसा माना जाता है कि झील दुनिया के सबसे बड़े खजाने में से एक है। देवता में भक्ति और विश्वास की बजह से , प्राचीन काल से, सोने, चांदी, मुद्रा झील में डाली जा रही है। 

कामरुनाग हिमाचल प्रदेश के सबसे अच्छे स्थलों में से एक है। हिमाचल प्रदेश के सभी अन्य झीलों की तरह, कामारुनग झील की अपनी किंवदंती है। कामरुनाग झील मंडी-करसोग रोड पर समुद्र तल से 3,334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र में झील में विशाल धार्मिक महत्व है क्योंकि मंडी में सबसे सम्मानित देवताओं में से एक मंदिर, जिसे कामरुनाग देव के नाम से जाना जाता है, झील के तट पर स्थित है। कामरुनाग सेराज घाटी का एक प्रसिद्ध देवता है। तीर्थयात्री झील में कामरुनाग ‘जतर’ के दौरान पवित्र स्नान करते है एक मेला हर साल 14 जून को आयोजित किया जाता है। लोग विशेष रूप से सोने के गहने, सिक्कों आदि को इस झील में डालते हैं। उनका मानना है के ऐसा करने से भगवन उन्हें दो गुना ज्यादा बापिस करते है। कई बार चोरो ने झील से खजाना चुराने की कोशिश की परन्तु कोई सफलता हाथ नहीं लगी। 

महाभारत के युद्ध की गाथा में एक कहानी आती है, बर्बरीक अथवा बबरू भान की जिसे रत्न यक्ष के नाम से भी जाना है. वह अपने समय का अजेय योधा था, उसकी भी इच्छा थी कि वह महाभारत के युद्ध में हिस्सा ले. जब उसने अपनी माता से युद्ध भूमी में जाने की आज्ञा लेनी चाही, तो माँ ने एक शर्त पर आज्ञा दी, कि वह उस सेना की ओर से लडेगा जो हार रही होगी. जब इस बात का पता श्री कृष्ण को चला, तो उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेने की ठानी. क्योंकि कृष्ण को पता था हर हाल में हार तो कोरवों की ही होनी है. कृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक से मिलने जा पहुंचे. उसके तरकश में सिर्फ तीन तीर देख कर कृष्ण ने ठिठोली की, कि बस तीन ही बाण से युद्ध करोगे. तब बर्बरीक ने बताया कि वह एक ही बाण का प्रयोग करेगा और वह भी प्रहार करने के बाद वापिस उसी के पास आ जायेगा. यदि तीनो बाणों का उपयोग किया तो तीनो लोकों में तबाही मच जाएगी. श्री कृष्ण ने उसे चुनौती दी कि वह सामने खड़े पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को भेद के दिखाए. जैसे ही बर्बरीक ने बाण निकाला, कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के निचे दबा दिया. कुछ ही क्षणों में उस बाण ने सभी पत्ते भेद कर, जैसे ही कृष्ण के पैर की तरफ रुख किया, तो कृष्ण ने जल्दी से अपना पैर हटा दिया. अब कृष्ण ने अपनी लीला रची और दान लेने की इच्छा जाहिर की. साथ ही वचन भी ले लिया कि वह जो भी मांगेंगे, बर्बरीक को देना पड़ेगा. वचन प्राप्त करते ही कृष्ण ने अपना विराट रूप धारण किया तथा उस योधा का सिर मांग लिया, बर्बरीक ने एक इच्छा जाहिर की, कि वह महाभारत का युद्ध देखना चाहता है. तो श्री कृष्ण ने उसका कटा हुआ मस्तक, युद्ध भूमि में एक ऊँची जगह पर टांग दिया, जहाँ से वह युद्ध देख सके. कथा में वर्णन आता है कि बर्बरीक का सिर जिस तरफ भी घूम जाता था, वह सेना जीत हासिल करने लग जाती थी. ये देख कर कृष्ण ने उस का सिर पांडवों के खेमे की ओर कर दिया. पांडवों की जीत सुनिश्चित हुई. युद्ध की समाप्ति के बाद कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि तुम कलयुग में श्याम खाटू के रूप में पूजे जाओगे, और तुम्हारा धड़ (कमर) कमरू के रूप में पूजनीय होगी.

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