माँ तारा देवी शिमला में 250 साल पुराना एक मंदिर है। मंदिर शोघी के पास कालका-शिमला राजमार्ग पर शिमला शहर से करीब 15 किमी दूर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि तारा देवी सेन राजवंश की कुल देवी थीं, जो बंगाल के पूर्वी राज्य से आए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिर बनाने की बात है तो राजा भूपेंद्र सेन ने मां का मंदिर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि एक बार भूपेंद्र सेन तारादेवी के घने जंगलों में शिकार खेलने गए थे। इसी दौरान उन्हें मां तारा और भगवान हनुमान के दर्शन हुए। मां तारा ने इच्छा जताई कि वह इस स्थल में बसना चाहती हैं ताकि भक्त यहां आकर आसानी से उनके दर्शन कर सके। इसके बाद राजा ने यहां मंदिर बनवाना शुरू किया। बाद में, उनके वंशज राजा बलबीर सेन ने मंदिर को तारा पर्वत नामक पहाड़ी चोटी पर स्थानांतरित कर दिया, यह दर्शाते हुए कि देवी हर किसी को देखती है। तारा देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सालाना आयोजित नवरात्रो के दौरान अष्टमी में है। इस समय के दौरान मंदिर परिसर में एक मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें कुश्ती एक महत्वपूर्ण परंपरा है। चोटी पर बने इस मंदिर के एक ओर घने जंगल है जबकि दूसरी ओर सड़कें। यह मंदिर अब बस सेवा से भी जुड़ गया है। साथ लगते जंगल में शिव बावड़ी भी है।