पाकिस्तान के बलूचिस्तान के रेगिस्तान में कराची शहर के लगभग दो सौ किलोमीटर पश्चिम में हिंदू देवी हिंगलाज का मंदिर हैं। हिंगलाज शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। ‘देवीपुराण’ में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। भारत के करोड़ो हिंदुओं के लिए बलूचिस्तान का एक मंदिर श्रद्धा का केंद्र है। दुर्गम पहाड़ों के बीच ये मंदिर है हिंगलाज भवानी का शक्तिपीठ। बलूचिस्तान में इसे नानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि सती का सिर हिंगोल नदी के किनारे हिंगलाज में गिरा था, इसीलिए ये सबसे प्रमुख शक्ति पीठ है। हिंगलाज देवी को पांडवों और छत्रियों की कुलदेवी के रूप में भी जाना जाता है। हर साल यहां 22 अप्रैल से हिंगलाज तीर्थ यात्रा होती है, इसमें गिने-चुने तीर्थयात्री भारत से भी पहुंचते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पाकिस्तान से वीजा मिल पाता है। इस शक्तिपीठ को जहां हिन्दू देवी हिंगलाज के रुप में पूजते है वहीं मुसलमान नानी का हज कहते हैं। यही कारण है कि इस शक्तिपीठ में आकर हिंदू और मुसलमान का भेद भाव मिट जाता है। दोनों ही संप्रदाय के लोग भक्ति पूर्वक माता की पूजा करते हैं। हिंगलाज देवी शक्तिपीठ के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो एक बार माता हिंगलाज के दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के कर्मों का दंड नहीं भुगतना पड़ता है।एक मान्यता यह भी है कि रावण के वध के बाद भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने भी हिंगलाज देवी की यात्रा की थी। राम ने यहां पर एक यज्ञ भी किया था।

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